Sunday 5 August 2018

सुनो ..


सुनो..

चलते चलते जब इस राह पे थक जाओगी 
दूर तक नज़रें दौड़ाओगी कुछ ना पाओगी
सुकूने क़ुल्ब की ख़ातिर भटकते हुए...
तब उसी मोड़ पर तुम मुझको खड़ा पाओगी
मेरी उल्फ़त मेरे जज़्बे मेरी वफाओं के निशां
अपनी राहों में कहीं बिखरे हुए पाओगी !!
निगाहें शर्म से झुक कर के उठ न पाएंगी
जब मेरी नज़रों से नज़रें मिलाना चाहोगी
ग़मे हयात की तल्ख़ियों से घबरा कर
मेरे सीने में खुद को छुपाना चाहोगी !!
तरसती आँखों में लरज़ते आंसुओं से 
मेरे दामन को भिगोना चाहोगी !! 
थाम कर वक़्त को लाचार हाथों में
फिरसे माज़ी की लकीरें पढ़ना चाहोगी !!
वही नग़मे जो तुम्हारे लिए कहे थे मैने
उन्ही नग़मों को फिरसे गुनगुनाना चाहोगी
फिर मोहब्बत की बाज़याबी के लिए 
सारा हासिल गंवाना चाहोगी।।

3 comments:

  1. Bahut umda likha aapne..aur aapke is blog k zarye humein bhi yad aaya k humara bhi ek profile bna hua h..shukriya..

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  2. shukriya :)
    profile ? matlb blog hai aapka?
    pata dijiye!

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  3. Ji..comment krne se adress link toh dikh rha hoga

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