Sunday 5 August 2018

तुम चली जाओ..











तुम चली जाओ..

अब तुम आई हो तो क्यों आई हो??
तुम्हारे वास्ते ये बाँहें अब मैं फैला सकता नहीं
तुम्हारे ज़ुल्फो-रुख़सार अब मैं सेहला सकता नहीं
तुम्हारे रंजो-ग़म को अब मैं बेहला सकता नहीं
वो नग़मे जो तुम्हारे लिए कहे थे मैंने
वही नग़मे अब मैं दोहरा सकता नहीं
अब नहीं मुमकिन, वो वक़्त गुज़र गया जानां
खुद मुझे खबर नहीं मैं किधर गया जानां
दिल भी मर गया कबका ! धड़कने फरार हैं
जिस्म सूखा पत्ता है ज़िन्दगी बेइख़्तियार है
जिस राह में तुम सब जीत ते  चले गए
उसी राह में सब हार गया हुँ मैं !!!!
तुम चली जाओ क अब मुझमें तुम्हारा कुछ भी नहीं
तुम्हे देने के लिए मायूसियों के सिवा कुछ  भी नहीं !!!


...जुनैद

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