Monday 6 August 2018

ग़ज़ल

ग़ज़ल 

नज़र में गुफ़्तुगू  रखना दिलों में उल्फतें रखना 
मगर फिर भी मोहब्बत में ज़रा सा फ़ासला रखना

यक़ीन रखना दिलों में आशिक़ाना क़ुर्बतें रखना  
मगर फिर भी क़राबत में ज़रा सा फ़ासला रखना

गले मिलना, निभाना यार के शाना-बा-शाना
मगर फिर भी रफ़ाक़त  में ज़रा सा फ़ासला रखना

सुनाना हालो-माज़ी का ज़माना वालिहाना
मगर फिर भी समाअत में ज़रा सा फ़ासला रखना

अमीन रहना  ज़माने में अमन के पासबाँ रहना 
मगर फिर भी शराफत  में ज़रा सा फ़ासला रखना

यक़ीनी है बज़्मे- यारां में तकल्लुफ का उठ जाना 
मगर फिर भी शरारत  में ज़रा सा फ़ासला रखना

मनाना मुआज़रत करना जो गर रूठा हो याराना 
मगर फिर भी समाजत में ज़रा सा फ़ासला रखना

सही है.. हाँ मोहब्बत में गिला शिकवा ज़रूरी है!
मगर फिर भी शिकायत में ज़रा सा फ़ासला रखना

..जुनैद 

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